‘हिंदू भारत के लिए जिम्मेदार हैं’, बेंगलुरु में मोहन भागवत का बड़ा बयान; बताया RSS का टारगेट

‘हिंदू भारत के लिए जिम्मेदार हैं’, बेंगलुरु में मोहन भागवत का बड़ा बयान; बताया RSS का टारगेट


Show Quick Read

Key points generated by AI, verified by newsroom

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार (8 नवंबर, 2025) को कहा कि आरएसएस का लक्ष्य हिंदू समाज को सत्ता के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र के गौरव के लिए संगठित करना है और हिंदू भारत के लिए जिम्मेदार हैं.

उन्होंने कहा कि भारत में कोई अहिंदू नहीं है, क्योंकि सभी एक ही पूर्वजों के वंशज हैं और देश की मूल संस्कृति हिंदू है. भागवत ने यह टिप्पणी कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में ‘संघ की 100 वर्ष की यात्रा: नए क्षितिज’ विषय पर व्याख्यान देते हुए की. इस दौरान आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले और विभिन्न क्षेत्रों के लोग उपस्थित थे.

संघ को सत्ता की चाह नहीं होती- भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ‘जब संघ के रूप में एक संगठित शक्ति खड़ी होती है, तो उसे सत्ता की चाह नहीं होती. वह समाज में प्रमुखता नहीं चाहता. वह बस भारत माता की महिमा के लिए समाज की सेवा और संगठित करना चाहता है. हमारे देश में, लोगों को इस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल लगता था, लेकिन अब वे विश्वास करते हैं.’ उन्होंने कहा कि जब यह प्रश्न उठाया जाता है कि आरएसएस हिंदू समाज पर क्यों ध्यान केंद्रित करता है, तो इसका उत्तर यह है कि हिंदू ही भारत के लिए जिम्मेदार हैं.

उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि अंग्रेजों ने हमें राष्ट्रीयता दी; हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं. दुनिया में हर जगह लोग इस बात पर सहमत हैं कि हर राष्ट्र की अपनी मूल संस्कृति होती है. वहां कई निवासी होती हैं, लेकिन एक मूल संस्कृति होती है. भारत की मूल संस्कृति क्या है? हम जो भी वर्णन करते हैं, वह हमें हिंदू शब्द की ओर ले जाता है.’

भारत में कोई अहिंदू नहीं है- भागवत

भागवत ने कहा, ‘भारत में वास्तव में कोई अहिंदू नहीं है और सभी मुसलमान और ईसाई एक ही पूर्वजों के वंशज हैं. शायद उन्हें यह बात पता नहीं है या उन्होंने यह बात भुला दी है.’ उन्होंने कहा, ‘जानबूझकर या अनजाने में, हर कोई भारतीय संस्कृति का पालन करता है, इसलिए कोई भी अहिंदू नहीं है और प्रत्येक हिंदू को यह समझना चाहिए कि वह हिंदू है, क्योंकि हिंदू होने का मतलब भारत के लिए जिम्मेदार होना है.’

60-70 सालों तक संगठन को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा- सरसंघचालक

सरसंघचालक ने कहा, ‘सनातन धर्म हिंदू राष्ट्र है और सनातन धर्म की प्रगति भारत की प्रगति है. आरएसएस के लिए रास्ता आसान नहीं रहा है और संगठन को लगभग 60-70 सालों तक कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिसमें दो प्रतिबंध और स्वयंसेवकों पर हिंसक हमले शामिल हैं.’

उन्होंने कहा, ‘दो बार प्रतिबंध लगाया गया. तीसरी बार भी लगा, लेकिन वह कोई खास प्रतिबंध नहीं था. विरोध हुआ, आलोचना हुई. स्वयंसेवकों की हत्या की गई. हर तरह से कोशिश की गई कि हम फलने-फूलने न पाएं. लेकिन स्वयंसेवक अपना सब कुछ संघ को देते हैं और बदले में कुछ नहीं चाहते. इसी आधार पर हमने इन सभी परिस्थितियों पर काबू पाया और अब ऐसी स्थिति में हैं कि समाज में हमारी कुछ विश्वसनीयता है.’ उन्होंने कहा कि शताब्दी वर्ष में, आरएसएस अपने कार्य को हर गांव और समाज के हर तबके, सभी जातियों और वर्गों तक पहुंचाना चाहता है.

यह भी पढ़ेंः जब दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी तकनीकी समस्या, केंद्रीय मंत्री राम मोहन नायडू ने खुद संभाला था मोर्चा



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *